Kabuliwala (काबुली वाला) by Rabindranath Tagore Hindi ebook pdf file.
काबुली वाला (मूल-बँगला से अनूदित रवीन्द्र की कहानियों का संकलन)
लेखक : रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दी शब्द-
“रविबाबू का काव्य चाहे चिरजीवी , न रहे, परन्तु उनक कहानियाँ निश्चित रूप से उन्हें अमर कीर्ति प्रदान करेंगी"-एक प्रसिद्ध अंग्रेज-समालोचक के इस कथन में रंचमात्र प्रतिशयोक्ति नहीं है । रविबाबू कवि के रूप में विश्व-प्रसिद्ध हुए, उपन्यासकार के रूप में भी उन्होंने यथेष्ट ख्याति प्रजित की, परन्तु वास्तविकता यह है कि कहानीकार के रूप में उन्होंने जो सफलता प्राप्त की है, वह सबसे बढ़ कर, अत्यन्त प्रद्भुत है । कला-शिल्प, गठन-कौशल, शब्दसौन्दर्य, भाव-पटुता, अभिव्यक्ति की सरसता तथा सूक्ष्म-तात्त्विकतासभी दृष्टियों से रविबाबू की कहानियाँ प्रनुपम एवं महत्त्वपूर्ण हैं । रवीन्द्र की कहानियाँ जिसने नहीं पढ़ीं, कथा-साहित्य में उसने सचमुच ही कुछ नहीं पढ़ा है । प्रस्तुत संग्रह में रविबाबू की बारह सुप्रसिद्ध कहानियाँ हैं । सभी का प्रनुवाद मूल-बँगला से प्रक्षरशः किया गया है । मूलभावों एवं शिल्प-सौन्दर्य की रक्षा के लिए संस्कृत-निष्ठा को नहीं त्यागा जा सका, परन्तु इससे अनुवाद की श्रीवृद्धि ही हुई है, इसे पढ़ कर जाना जा सकेगा ।
- राजेश दीक्षित
The ebook pdf has 139 pages, 4mb pdf size with good quality.
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काबुली वाला (मूल-बँगला से अनूदित रवीन्द्र की कहानियों का संकलन)
लेखक : रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दी शब्द-
“रविबाबू का काव्य चाहे चिरजीवी , न रहे, परन्तु उनक कहानियाँ निश्चित रूप से उन्हें अमर कीर्ति प्रदान करेंगी"-एक प्रसिद्ध अंग्रेज-समालोचक के इस कथन में रंचमात्र प्रतिशयोक्ति नहीं है । रविबाबू कवि के रूप में विश्व-प्रसिद्ध हुए, उपन्यासकार के रूप में भी उन्होंने यथेष्ट ख्याति प्रजित की, परन्तु वास्तविकता यह है कि कहानीकार के रूप में उन्होंने जो सफलता प्राप्त की है, वह सबसे बढ़ कर, अत्यन्त प्रद्भुत है । कला-शिल्प, गठन-कौशल, शब्दसौन्दर्य, भाव-पटुता, अभिव्यक्ति की सरसता तथा सूक्ष्म-तात्त्विकतासभी दृष्टियों से रविबाबू की कहानियाँ प्रनुपम एवं महत्त्वपूर्ण हैं । रवीन्द्र की कहानियाँ जिसने नहीं पढ़ीं, कथा-साहित्य में उसने सचमुच ही कुछ नहीं पढ़ा है । प्रस्तुत संग्रह में रविबाबू की बारह सुप्रसिद्ध कहानियाँ हैं । सभी का प्रनुवाद मूल-बँगला से प्रक्षरशः किया गया है । मूलभावों एवं शिल्प-सौन्दर्य की रक्षा के लिए संस्कृत-निष्ठा को नहीं त्यागा जा सका, परन्तु इससे अनुवाद की श्रीवृद्धि ही हुई है, इसे पढ़ कर जाना जा सकेगा ।
- राजेश दीक्षित
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