Shrimad Bhagwat Geeta (श्रीमद्भगवद्गीता) In Hindi book pdf file
Book name- Shrimad Bhagwat Geeta (श्रीमद्भगवद्गीता)Pages- 256
File format- pdf
Size- 473kb
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साधारण भाषाटीकासहित
श्रीमद्भगवद्गीता (मोटे अक्षरवाली)
श्रीगीताजीका प्रधान विषय-
श्रीगीताजीमें भगवान्ने अपनी प्राप्तिके लिये मुख्य दो मार्ग बतलाये हैंएक सांख्ययोग, दूसरा कर्मयोग। उनमें - (१) सम्पूर्ण पदार्थ मृग-तृष्णाके जलकी भाँति अथवा स्वप्नकी सृष्टिके सदृश मायामय होनेसे मायाके कार्यरूप सम्पूर्ण गुण ही गुणोंमें बर्तते हैं, ऐसे समझकर मन, इन्द्रियों और शरीरद्वारा होनेवाले सम्पूर्ण कममें कर्तापनके अभिमानसे रहित होना (अ० ५ श्लोक ८-९) तथा सर्वव्यापी सच्चिदानन्दघन परमात्माके स्वरूपमें एकीभावसे नित्य स्थित रहते हुए एक सच्चिदानन्दघन वासुदेवके सिवाय अन्य किसीके भी होनेपनेका भाव न रहना, यह तो सांख्ययोगका साधन है तथा (२) सब कुछ भगवान्का समझकर सिद्धि-सिद्धिमें समत्वभाव रखते हुए आसक्ति और फलको इच्छाका त्याग कर भगवदाज्ञानुसार केवल भगवान्के ही लिये सब कमका आचरण करना (अ० २ श्लोक ४८, अ० ५ श्लोक १०) तथा त्रद्धा-भक्तिपूर्वक मन, वाणी और शरीरसे सब प्रकार भगवान्के शरण होकर नाम, गुण और प्रभावसहित परमेश्वरके स्वरूप का सदैव चिन्तन करना (अ० ६ श्लोक ४७), यह कर्मयोगका साधन है।
उक्त दोनों साधनों का परिणाम एक होनेके कारण वे वास्तवमें अभिन्न माने गये हैं (अ० ५ श्लोक ४-५) । परन्तु साधनकालमें अधिकारी-भेदसे दोनोंका भेद होनेके कारण दोनों मार्ग भिन्न-भिन्न बतलाये गये हैं (अ० ३ श्लोक ३) । इसलिये एक पुरुष दोनों मागद्वारा एक कालमें नहीं चल सकता, जैसे श्रीगंगाजीपर जानेके लिये दो मार्ग होते हुए भी एक मनुष्य दोनों मागद्वारा एक कालमें नहीं जा सकता। उक्त साधनों में कर्मयोगका साधन संन्यास आश्रममें नहीं बन सकता; क्योंकि संन्यास-आश्रममें कमेका स्वरूपसे भी त्याग कहा गया है और सांख्ययोगका साधन सभी आश्रमों में बन सकता है। यदि कहो कि सांख्ययोगको भगवान्ने संन्यासके नाम से कहा है, इसलिये उसका संन्यास-आश्रममें ही अधिकार है, गृहस्थमें नहीं, तो यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि दूसरे अध्यायमें श्लोक ११ से ३० तक जो सांख्यनिष्ठाका उपदेश किया गया है, उसके अनुसार भी भगवान्ने जगहजगह अर्जुनको युद्ध करनेको योग्यता दिखायी है। यदि गृहस्थमें सांख्ययोगका अधिकार ही नहीं होता तो भगवान्का इस प्रकार कहना कैसे बन सकता ? हाँ, इतनी विशेषता अवश्य है कि सांख्यमार्गका अधिकारी देहाभिमानसे रहित होना चाहिये; क्योंकि जबतक शरीरमें अहंभाव रहता है, तबतक सांख्ययोगका साधन भली प्रकार समझमें नहीं आता। इसीसे भगवान्ने सांख्ययोगको कठिन बतलाया है (अः ५ श्लोक ६) तथा (कर्मयोग) साधनमें सुगम होनेके कारण अर्जुनके प्रति जगह-जगह कहा है कि तू निरन्तर मेरा चिन्तन करता हुआ कर्मयोगका आचरण कर।
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